दीपावली के त्योहार से ठीक पहले उत्तर प्रदेश के अयोध्या में ‘दीपोৎসव’ का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें सरयू नदी के तट पर 26 लाख मिट्टी के दीप जलाए जाएंगे। इस भव्य आयोजन को लेकर योगी आदित्यनाथ सरकार पूरी तरह से सजग है और कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती। लेकिन इसी बीच, उत्तर प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने इस पहल पर तीखी आलोचना की है, जो खुद विवादों में घिर गई।
अखिलेश यादव ने कहा कि वे कोई सुझाव देना नहीं चाहते, लेकिन भगवान राम के नाम पर एक बात जरूर कहना चाहते हैं। उनका तर्क था कि दुनिया के कई बड़े शहर बड़े दिन यानी क्रिसमस के मौके पर कई महीने तक चमक-दमक और रोशनी से जगमगाते हैं। हमें उनसे सीखने की जरूरत है। उन्होंने सवाल उठाया कि दीपावली में दीया, मोमबत्ती और लालटेन पर इतना पैसा क्यों खर्च किया जाता है? उनका यह भी मानना है कि इस सरकार से बेहतर बदलाव की जरूरत है।
अयोध्या में ‘दीपोৎসव’ के आयोजन से पहले अखिलेश यादव के ये बयान साफ तौर पर एक राजनीतिक हमले की तरह देखे गए। उन्होंने सरकार की नीतियों और उसकी प्राथमिकताओं पर गंभीर सवाल उठाए। उनका कहना था कि समाज के हित में सरकार को कुछ अलग और स्थायी सोच अपनानी चाहिए, बजाय इस तरह के महंगे और दिखावटी आयोजनों के।
योगी आदित्यनाथ की सरकार ने दीपोत्सव को धार्मिक और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक बताया है। उनका दावा है कि इस तरह के आयोजन से न केवल अयोध्या की सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी लाभ होगा। इसके साथ ही, यह आयोजन पर्यटन को बढ़ावा देने में भी मददगार साबित होगा।
हालांकि, अखिलेश यादव की आलोचना ने राजनीति में नई बहस को जन्म दिया है। उनके समर्थक इसे सरकार की ‘धार्मिक राजनीति’ और जनता के पैसों की बर्बादी करार देते हैं। वहीं, योगी सरकार के समर्थक इसे सांस्कृतिक पुनरुत्थान और विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानते हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बयान आगामी चुनावों के मद्देनजर समाजवादी पार्टी द्वारा एक रणनीतिक कदम हो सकता है। अयोध्या और दीपावली जैसे संवेदनशील मुद्दों पर बयान देकर पार्टी अपनी पहचान मजबूत करना चाहती है और सरकार की नीतियों पर सवाल उठा कर अपनी पकड़ को मज़बूत करना चाहती है।
इसके अलावा, इस विवाद ने यह भी दर्शाया है कि भारत में धार्मिक त्योहार और राजनीति का मेल कितना गहरा और जटिल है। हर सरकार और राजनीतिक दल अपने-अपने तरीके से धार्मिक भावनाओं का इस्तेमाल चुनावी रणनीति के लिए करते हैं।
सामाजिक और धार्मिक आयोजनों को लेकर जनता की प्रतिक्रिया भी मिश्रित है। कुछ लोग अखिलेश यादव के विचारों से सहमत हैं और सोचते हैं कि ऐसे महंगे आयोजन के बजाय पैसा सामाजिक विकास और गरीबों के कल्याण पर खर्च होना चाहिए। वहीं, कुछ लोग दीपोत्सव जैसे कार्यक्रमों को सांस्कृतिक पहचान और एकता का माध्यम मानते हैं और सरकार के प्रयासों का समर्थन करते हैं।
यह विवाद उत्तर प्रदेश की राजनीतिक स्थिति को और भी गर्मा सकता है, क्योंकि दीपावली और अयोध्या दोनों ही इस क्षेत्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर और भी तीखी बहस और बयानबाजी देखने को मिल सकती है।
अंततः, दीपावली से पहले हुए इस बयानबाजी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि धार्मिक आयोजनों का राजनीतिकरण देश में कितनी गहराई तक पहुंच चुका है। चाहे वह दीपावली हो या कोई और त्योहार, राजनीति हमेशा इन मुद्दों के साथ जुड़ी रहती है और जनता के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए इनका उपयोग करती है।
अखिलेश यादव की आलोचना और योगी सरकार का दीपोत्सव आयोजन, दोनों ही अपने-अपने तरीके से उत्तर प्रदेश की राजनीति को नई दिशा देने की कोशिश कर रहे हैं। अब देखना यह है कि जनता इस बहस को कैसे स्वीकार करती है और आगामी चुनावों में इसका क्या असर पड़ता है।