रायपुर: छत्तीसगढ़ में शनिवार को एक ऐतिहासिक पल देखने को मिला, जब 200 से अधिक नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में शामिल होने का फैसला किया। राज्य पुलिस और प्रशासन ने इन सभी का स्वागत करते हुए उन्हें समाज में पुनः बसाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
राज्य के आईजी सुंदरराज पी. ने जानकारी दी, “आज जिन नक्सलियों ने हथियार छोड़े हैं, वे वर्षों से जंगलों में रहकर सशस्त्र आंदोलन का हिस्सा थे। अब वे विकास की धारा में शामिल होकर समाज में योगदान देना चाहते हैं।” यह आत्मसमर्पण अभियान मुख्य रूप से दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर जिलों में हुआ, जो लंबे समय से नक्सल गतिविधियों के केंद्र रहे हैं। आत्मसमर्पण करने वालों में कई महिला कैडर, किड्स यूनिट (बाल दस्ते) के सदस्य और स्थानीय स्तर के नक्सल कमांडर भी शामिल हैं।
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पुलिस के अनुसार, आत्मसमर्पण करने वालों को सरकार की ‘लोन वर्राटू योजना’ (घर वापसी कार्यक्रम) के तहत लाभ दिया जाएगा। इस योजना में आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को आर्थिक सहायता, रोजगार प्रशिक्षण और पुनर्वास की सुविधा दी जाती है। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में लगातार विकास कार्यों और बेहतर संवाद के चलते नक्सल प्रभावित इलाकों में माहौल बदल रहा है। अब स्थानीय लोग और युवा हिंसा से दूर रहकर रोजगार और शिक्षा की राह पकड़ रहे हैं।
आईजी सुंदरराज ने कहा, “यह सिर्फ आत्मसमर्पण नहीं, बल्कि शांति का संदेश है। आज ये सभी लोग समाज में नई शुरुआत कर रहे हैं।” सरकार का दावा है कि इस कदम से नक्सल गतिविधियों में बड़ी गिरावट आएगी। वहीं, विशेषज्ञों का मानना है कि केवल आत्मसमर्पण ही नहीं, बल्कि स्थायी विकास, शिक्षा और रोज़गार के अवसर ही इस समस्या का स्थायी समाधान हो सकते हैं।
मुख्यमंत्री ने बयान जारी कर कहा, “यह छत्तीसगढ़ के लिए गौरव का क्षण है। जो लोग कभी हथियार उठाते थे, वे आज शांति और प्रगति की राह पर चल पड़े हैं।” प्रशासन ने आत्मसमर्पण करने वालों को पुनर्वास शिविरों में भेजा है, जहां उन्हें कौशल प्रशिक्षण, शिक्षा और सामाजिक जीवन में समाहित होने के अवसर दिए जा रहे हैं। यह आत्मसमर्पण राज्य के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक माना जा रहा है।