भाजपा में नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की तलाश लंबे समय से खिंचती जा रही है। पार्टी के भीतर और बाहर दोनों जगह इस बात की चर्चा तेज़ है कि आखिर किस नेता को यह जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। राजनीतिक गलियारों में यह भी माना जा रहा है कि इस प्रक्रिया पर पार्टी के वैचारिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की गहरी नज़र है।
इसी पृष्ठभूमि में संघ प्रमुख मोहन भागवत का हालिया बयान राजनीतिक हलकों में हलचल मचा गया है। उन्होंने इशारों-इशारों में कहा, “अगर पहले ही निर्णय ले लिया जाता, तो इतना समय क्यों लगता?” भागवत की यह टिप्पणी भाजपा नेतृत्व पर एक हल्की लेकिन तंज़ भरी चोट के रूप में देखी जा रही है।
विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा फिलहाल नेतृत्व संकट से जूझ रही है। लोकसभा चुनावों में अपेक्षित प्रदर्शन न मिलने के बाद से संगठन के भीतर असंतोष बढ़ा है। नए अध्यक्ष के चयन में हो रही देरी ने इस असंतोष को और गहरा कर दिया है।
जानकारों के अनुसार, भाजपा चाहती है कि ऐसा नेता अध्यक्ष बने जो संगठन को मज़बूत करने के साथ-साथ आगामी चुनावों में रणनीतिक भूमिका भी निभा सके। दूसरी ओर, संघ के भी अपने विचार और पसंद हैं। यही वजह है कि सहमति बनने में समय लग रहा है।
मोहन भागवत का यह “स्लाई जैब” साफ़ तौर पर संकेत देता है कि भाजपा और संघ के बीच अंदरखाने खींचतान जारी है। अब देखना यह होगा कि भाजपा किस रणनीति के तहत अपने नए अध्यक्ष का ऐलान करती है और इस ऐलान से संगठन में कितना संतुलन कायम हो पाता है।